वेदों के अनुसार मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष तक कैसे रहे इस का उपदेश दैनिक संध्या के निम्न मंत्र मे दिया गया है |
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्र्मुच्चरत् !
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् !!यजु: 36.24
यह आज सार्वजनिक अनुभव है कि मानव शरीर में आंखें सर्व प्रथम शिथिल हो जाती हैं | चश्मा लगना फिर केटेरेक्ट का ओपरेशन 60 वर्ष तक की आयु में साधारण बात है | फिर 70 वर्ष तक की आयु तक कानों द्वारा सुनना कम होने लगता है | 80 वर्ष की आयु के बाद बोलने की क्षमता भी क्षीण होने लगती है |
90 तक पहुंचने पर स्वयं चलने फिरने की क्षमता कम हो कर मनुष्य दूसरों की सहायता की अपेक्षा रखने लगता है | आधुनिक आयुर्विज्ञान के पास इन का कोइ उपचार नहीं है | इन सब को एक बुढ़ापे की मजबूरी बता कर सांत्वना देता है |
परंतु वेद इस मंत्र द्वारा एक सौ वर्ष तक ठीक देखने, सुनने , बोलने और शरीर से किसी पर आश्रित न होने के लिए “शुक्र्मुच्चरत अर्थात ऊर्ध्वरेता” का उपदेश दे वरहा है |
ऊर्ध्वरेता को एक अव्यवहारिक , और अवैज्ञानिक बता कर , ब्रह्मचर्य के महत्व पर हंसी उड़ा प्पश्चात्य शिक्षा ने समाज का बड़ा अपकर लिया है | समाज में शारीरिक असाध्य रोगों को बड़ावा दे कर बड़ा अन्याय भी कियाहै |
परंतु आज ऊर्ध्वरेता को आधुनिक विज्ञान भी अब मान्यता देने लगा है |
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्मचारी जब वीर्य के स्खलन को रोकने लगता है तो मानव शरीर में रेतस का resorption होने लगता है | यही ऊर्ध्वरेता है |
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