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"Success is most often achieved by inevitable.,G.V.B.THE UNIVERSITY OF VEDA

The only success in the world is to meet those who are ready to erase themselves, because the rule here is reversed, the more those who want to save themselves remain unsafe, and those who give themselves in insecurity are in the world. Are able to prove them. I am the God of fire in every way, speeding up the conscious beings, doing all the sacrifices of all kinds, doing the best and the doer of the holy karmas, and doing all the deeds in the same way as the revolutionaries and seeing the trio of this phenomenon of this phenomenon. I am a doer I am a God who is a fire, a revolutionary, a revolutionary, a revolutionary who knows all the things like a poem. Because of this, there is no incompleteness in any work of this world universe. That is, all the work done by God is complete and best. That is why I am the prime cause of truth and truth, the first eternal cause of consciousness. I am the God of all gods. And all Gods accompany me to every creature. All of you, too, look forward to our actions and is happy to be like me.
वेदों के अनुसार मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष तक कैसे रहे इस का उपदेश दैनिक संध्या के निम्न मंत्र मे दिया गया है |
तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्र्मुच्चरत्‌ !
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्‌ !!यजु: 36.24
यह आज सार्वजनिक अनुभव है कि मानव शरीर में आंखें सर्व प्रथम शिथिल हो जाती हैं | चश्मा लगना फिर केटेरेक्ट का ओपरेशन 60 वर्ष तक की आयु में साधारण बात है | फिर 70 वर्ष तक की आयु तक कानों द्वारा सुनना कम होने लगता है | 80 वर्ष की आयु के बाद बोलने की क्षमता भी क्षीण होने लगती है |
90 तक पहुंचने पर स्वयं चलने फिरने की क्षमता कम हो कर मनुष्य दूसरों की सहायता की अपेक्षा रखने लगता है | आधुनिक आयुर्विज्ञान के पास इन का कोइ उपचार नहीं है | इन सब को एक बुढ़ापे की मजबूरी बता कर सांत्वना देता है |
परंतु वेद इस मंत्र द्वारा एक सौ वर्ष तक ठीक देखने, सुनने , बोलने और शरीर से किसी पर आश्रित न होने के लिए “शुक्र्मुच्चरत अर्थात ऊर्ध्वरेता” का उपदेश दे वरहा है |
ऊर्ध्वरेता को एक अव्यवहारिक , और अवैज्ञानिक बता कर , ब्रह्मचर्य के महत्व पर हंसी उड़ा प्पश्चात्य शिक्षा ने समाज का बड़ा अपकर लिया है | समाज में शारीरिक असाध्य रोगों को बड़ावा दे कर बड़ा अन्याय भी कियाहै |
परंतु आज ऊर्ध्वरेता को आधुनिक विज्ञान भी अब मान्यता देने लगा है |
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्मचारी जब वीर्य के स्खलन को रोकने लगता है तो मानव शरीर में रेतस का resorption होने लगता है | यही ऊर्ध्वरेता है |

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